Dear Friends !! आज सुबह अनायास ही में channel change करते करते भगती चैनल की list मे चला गया। ऐसा बहुत दिनों बाद हुआ था। एक चैनल में मैने एक सजी सावरी देवी को देखा जो प्रवचन क़र रहीं थीं। एक बाबा अलग अलग टोटके बता रहें थे, कभी किसी को left hand se money देने की सलाह दे रहे थे तो किसी को अपने right hand के side में पानी से भरा गिलास रखने कि। … और ऐसा करने से शायद कोई अमीर बन रहा है तो किसी की परेशानी खत्म हो रही थी (As per baba words)
I don't know what is the reality and why people faith on that type of work. I not to be the part of problem ...why they believe ...and all that but at that time i remember my child hood story which is shared by my father...और में उस story को आपके साथ शेयर करना चाहूँगा।
कहानी कुछ इस प्रकार थी … एकबार तीर्थ यात्रा पे जानेवाले लोगो का संघ संत तुकाराम जी के पास जाकर उनके साथ चलनेकी प्रार्थना की। तुकारामजी ने अपनी असमर्थता बताई। उन्होंने तीर्थयात्रियो को एक कड़वा कद्दू देते हुए कहा : “मै तो आप लोगो के साथ आ नहीं सकता लेकिन आप इस कद्दू को साथ ले जाईए और जहाँ – जहाँ भी स्नान करे, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लाये।”
I don't know what is the reality and why people faith on that type of work. I not to be the part of problem ...why they believe ...and all that but at that time i remember my child hood story which is shared by my father...और में उस story को आपके साथ शेयर करना चाहूँगा।
कहानी कुछ इस प्रकार थी … एकबार तीर्थ यात्रा पे जानेवाले लोगो का संघ संत तुकाराम जी के पास जाकर उनके साथ चलनेकी प्रार्थना की। तुकारामजी ने अपनी असमर्थता बताई। उन्होंने तीर्थयात्रियो को एक कड़वा कद्दू देते हुए कहा : “मै तो आप लोगो के साथ आ नहीं सकता लेकिन आप इस कद्दू को साथ ले जाईए और जहाँ – जहाँ भी स्नान करे, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लाये।”
लोगो ने उनके गूढार्थ पे गौर किये बिना ही वह कद्दू ले लिया और जहाँ - जहाँ गए, स्नान किया वहाँ – वहाँ स्नान करवाया; मंदिर में जाकर दर्शन किया तो उसे भी दर्शन करवाया। ऐसे यात्रा पूरी होते सब वापस आए और उन लोगो ने वह कद्दू संतजी को दिया। तुकारामजी ने सभी यात्रिओ को प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया। तीर्थयात्रियो को विविध पकवान परोसे गए। तीर्थ में घूमकर आये हुए कद्दूकी सब्जी विशेष रूपसे बनवायी गयी थी। सभी यात्रिओ ने खाना शुरू किया और सबने कहा कि “यह सब्जी कड़वी है।”
तुकारामजी ने आश्चर्य बताते कहा कि “यह तो उसी कद्दू से बनी है, जो तीर्थ स्नान कर आया है। बेशक यह तीर्थाटन के पूर्व कड़वा था, मगर तीर्थ दर्शन तथा स्नान के बाद भी इसी में कड़वाहट है !”
यह सुन सभी यात्रिओ को बोध हो गया कि ‘हमने तीर्थाटन किया है लेकिन अपने मन को एवं स्वभाव को सुधारा नहीं तो तीर्थयात्रा का अधिक मूल्य नहीं है। हम भी एक कड़वे कद्दू जैसे कड़वे रहकर वापस आये है।’means अगर हम बाबाओ के टोटके छोड़ कर अगर honestly अपने दिलो दिमाग की करवाहट क़म क़र दें तौ शयद we can manage our life in better ways...बाते गौर करने वाली है। … सोचिएगा जरूर।